mayajeet class

maya kab aati hai, jab hum deh bhan mein aateyhai, baba ko bhul jatey hai, baba ko sath nahi raktey hai, baba ka hath chod detey

 

Maya bahuroopi, visesh deh, deh ke padardh, samabandon se maya war karti hai. Jo yodhey swayam ko bachakar, vijayi bante hai, vahi veer, veerom mein veer ko mahavir kehtey hai.

108 atmayein, mayajeet banne valey, vaijaynti mala mein aayengay, aur vunka gayan poojan dwapar se huwa.

Maya ka janam kab aur kaise hota hai ? dwapar se, deh ke bhan se hota hai.

maya ke vibhinn ropom par vijay paney ki yukti ya.

Combined swaroop mein sthith rahengay, light swaroop mein sthith hongay to akelapan feel nahi hongay.

 

Man vudaas hai, to kahi na kahi may ka war huwa hai.

Das sir vala ravan se raam ladne jata hai.

Ravan ke ek sir ko kata, punah sir jud jata hai, hath ko kata to punah hath jud jaata hai. Vibhishan ne ishaara kiya ki naabhi mein teer maro, tab ravan ka ansh aur vansh samapt ho jata hai.

Center point deh abhimaan , par teer martey hai, gyan aur yog ka baan use karte hai to may aka mool samapth ho jatey hai.

Sangam yug mein har pal har ghadi maya se yudh hota hai. Unknown warriors, gupt yodhay hai, well known ruhani yoddhey hai

Maya se boxing, shareer rup box samajtey hai, maya neechey gira deti hai.

 

 

Maya se bachne ke liye:

Dushman – man ko dushit karne vali maya humare peechey padi rehti hai.

Maya ke war se bachney vijay prapt karne ke liye, kuch yukti ya, vijaya sthithi anubhav karengay.

  • Amritvela vijay ka tilak baba humein lagatey hai, aisa hum anubhav karey. Jab bacha yudh ki seema par jata, apne desh ki suraksha rakhna. Amar bhav ka Vijayi bha ka tilak lagatey hai, hey merey vijayi ratan, sarey din mein dushman se swayam ki raksha karna.

Mahavir atma hu, vijayi atma hu tilakdhari hu.

 

  • Har din sanjeevani buti gyan ki murli ko achchi tarh se sunna hai. Jo maya ki behoshi hoti hai, idhar vudhar ki vruthi ka prabhav, atma din bhar sanjeevani buti soongne se hosh mein rehtey hai. Hoshiyar sada hosh mein rehte hai.
  • Sada swayam ko vyasth rakhna hai. Khali man, shaitan ka ghar hota hai.

Sarey din ki dincharya , man ka time table banaya. Badey logon ka minute by minute time table hota hai. Vibhinn prakar ke abhyaas practice, homework, drill se man ko busy rakhey. Chart rakhna hai.

  • Deh rupi makaan mein atma rupi Deepak jalta rahey. Jaha hai andhera, vaha hai bhotom ka ghera. Gyan ka grut dalengay to Deepak jalta hai.

Jab samajtey hai kaya tab aa jaati hai maya. Ye deh maya ki property hai. Atma ki bhaan sada smriti mein rakna hai. Jangal ka sher agni se darta hai. Maya rupi kagaz ka sher humse swatah door bhagega.

  • Sada ishwariya nashey mein zoomtey rahey,ka kavach pahankar rakhey. Maya ke akarshan ka prabhav nahi padega. Sansar ki sarvoch satta humein mil gaye. Sada royal, vunchey nashey mein rehna hai. Almighty authority ki santaan hu, mera backbone hai.

Ruhani military : Attention please.

  • Drama mein kab kyon, kaha, kya ye maya ke darwajey hai. Issey humein safe rakhna hai. Drama is perfect. Vyarth chintan mein amulya samay ko nasht nahi karna hai. Samay, sankalp ke khajaney ko safal karna hai. Jo huwa achcha huwa, achcha ho raha hai.
  • Swayam ko Alert rakhna hai. Race hai, ghodey dowd rahey hai. Alert and active rehney se swayam ko sampannata ke sameep anubhav kartey hai. Albeleypan ko samapt karna hai.

6th vikar hai ye, 5 vikar ko bulata hai. Susti fir se maya ko bulati hai. Karengay, chalengay, bahut samay pada hai ye albeleypan ke sankalpt hai. Mujhe hi karna hai, mujhe he number lena hai…samay bahut thoda baaki hai. Alert , active , accurate.

  • Durgatana tabhi hoti hai, jab swayam par savdhani hat jaati hai. Side scene dekhtey hai, drunk hai, swayam par dhyaan nahi to accident hoti hai. Dekhna hai to shivbaba, bb, dadis ko dekhna hai , role models ko, aur kisiko nahi. Hero par sabka dhyan rehta hai.
  • Kisi mein bhi aasakti na ho. Behad ki vyragyavritti ho.

Aasakti hona mana maya aa sakti hai. Duniya ka ras anubhav karne ki rassi, maya ka gulaam banadeti hai. Sarv rasom , prapti, khanom ka bhandar hai, vusey apna sansar banaye.

Koyi vyakti, vybhav, jismein man baar baar jati hai, iska matlab vaha humari aasakti hai.

Ankom mein humesha nayi duniya, sukshma lok, parandham basi ho to budhi rupi langar vuteyga.

10 ) kya sara sangam yudh mein beeteyga to vijay ka nasha khushi kab anubhav karengay.

Purine sanskaron ka samapti samaroh banavo.

Daivi sanskar dharan karey.

Numasham yog Shaktishali yog se , yog agni se kaam agni, krdohagni, vikaron ki agni samapt hogi.

Cricket match jeetey hai, khushi mein jhoomte, nachteyhai. Jo haarte hai, vah murjhaya huwa hotey hai.

सन्तुष्ट आत्मायें सदा मायाजीत हैं ही। यह मायाजीत वालों की सभा है ना। माया से घबराने वाले तो नहीं हैं ना। माया आती किसके पास है? सभी के पास आती तो है ना! ऐसा कोई है जो कहे माया आती ही नहीं? आती सबके पास है लेकिन कोई घबराता है कोई पहचान लेता है इसलिए संभल जाता है। मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने वाले बाप के आज्ञाकारी बच्चे माया को दूर से ही पहचान लेते हैं। पहचानने में देरी करते हैं, वा गलती करते हैं तब माया से घबरा जाते हैं।

जैसे यादगार में कहानी सुनी है – सीता ने धोखा क्यों खाया? क्योंकि पहचाना नहीं। माया के स्वरूप को न पहचानने कारण धोखा खाया। अगर पहचान लें कि यह ब्राह्मण नहीं, भिखारी नहीं, रावण है तो शोक वाटिका का इतना अनुभव नहीं करना पड़ता। लेकिन पहचान देरी से आई तब धोखा खाया और धोखे के कारण दुःख उठाना पड़ा। योगी से वियोगी बन गई। सदा साथ रहने से दूर हो गई। प्राप्ति स्वरूप आत्मा से पुकारने वाली आत्मा बन गई। कारण? पहचान कम। माया के रूप को पहचानने की शक्ति कम होने कारण माया को भगाने के बजाए स्वयं घबरा जाते हैं। पहचान कम क्यों होती है, समय पर पहचान नहीं आती, पीछे क्यों आती। इसका कारण? क्योंकि सदा बाप की श्रेष्ठ मत पर नहीं चलते। कोई समय याद करते हैं, कोई समय नहीं। कोई समय उमंग-उत्साह में रहते, कोई समय नहीं रहते। जो सदा की आज्ञा को उल्लंघन करते अर्थात् आज्ञा की लकीर के अन्दर नहीं रहने के कारण माया समय पर धोखा दे देती हैं। माया में परखने की शक्ति बहुत है। माया देखती है कि इस समय यह कमज़ोर है। तो इस प्रकार की कमज़ोरी द्वारा इसको अपना बना सकते हैं। माया के आने का रास्ता है ही – कमज़ोरी। जरा-सा भी रास्ता मिला तो झट पहुँच जाती है। जैसे आजकल डाकू क्या करते हैं! दरवाजा भले बन्द हो लेकिन वेन्टीलेटर से भी आ जाते हैं। जरा-सा संकल्प मात्र भी कमज़ोर होना अर्थात् माया को रास्ता देना है। इसलिए मायाजीत बनने का बहुत सहज साधन है – ‘सदा बाप के साथ रहो।’ साथ रहना अर्थात् स्वत: ही मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहना। एक-एक विकार के पीछे विजयी बनने की मेहनत करने से छूट जायेंगे। साथ रहो तो स्वत: ही जैसे बाप वैसे आप। संग का रंग स्वत: ही लग जायेगा। बीज को छोड़ सिर्फ शाखाओं को काटने की मेहनत नहीं करो। आज काम जीत बन गये, कल क्रोध जीत बन गये, नहीं। हैं ही सदा विजयी! जब बीजरूप द्वारा बीज को खत्म कर देंगे तो बार-बार मेहनत करने से स्वत: ही छूट जायेंगे। सिर्फ बीजरूप को साथ रखो। फिर यह माया का बीज ऐसा भस्म हो जायेगा जो फिर कभी भी उस बीज से अंश भी नहीं निकल सकता। वैसे भी आग में जले हुए बीज से कभी फल नहीं निकल सकता।

तो साथ रहो, सन्तुष्ट रहो तो माया क्या करेगी! सरेण्डर हो जायेगी। माया को सरेण्डर करना नहीं आता है? अगर स्वयं सरेण्डर हैं तो माया उसके आगे सरेण्डर है ही। तो माया को सरेण्डर किया है या अभी तैयारी कर रहे हो? क्या हाल-चाल है? जैसे अपने सरेण्डर होने की सेरीमनी मनाते हो वैसे माया को सरेण्डर करने की सेरीमनी मना ली है या मनानी है? होली हो गये माना सेरीमनी हो गई, जल गई। फिर वहाँ जा करके ऐसे तो पत्र नहीं लिखेंगे कि क्या करें, माया आ गई। खुशखबरी के पत्र लिखेंगे ना। कितनी सरेण्डर सेरीमनी मनाई है, हमारी तो हो गई लेकिन और आत्माओं द्वारा भी माया को सरेण्डर कराया। ऐसे समाचार लिखेंगे ना! अच्छा –

जितने उमंग-उत्साह से आये हो उतना ही बापदादा भी सदा बच्चों को ऐसे उमंग-उत्साह से संतुष्ट आत्मा के रूप में देखने चाहते हैं। लगन तो है ही। लगन की निशानी है – जो इतना दूर से समीप पहुँच गये हो। दिन रात लगन से दिन गिनते-गिनते यहाँ पहुँच गये। लगन न होती तो पहुँचना भी मुश्किल होता। लगन है इसमें तो पास हो। पास सर्टिफिकेट मिल गया ना। हर सबजेक्ट में पास। फिर भी बापदादा बच्चों को आफरीन देते हैं। क्योंकि पहचानने की नजर तेज है। दूर रहते भी बाप को पहचान लिया। साथ अर्थात् देश में रहने वाले नहीं पहचान सकते। लेकिन आप लोग दूर बैठे भी पहचान गये। पहचान कर बाप को अपना बनाया वा बाप के बने। इसके लिए बापदादा विशेष आफरीन देते हैं। तो जैसे पहचानने में आगे गये वैसे मायाजीत बनने में भी नम्बरवन बन सदा बाप की आफरीन लेने के योग्य अवश्य बनेंगे। जो बापदादा कोई भी माया से घबराने वाली आत्मा को आपके पास भेजें कि इन बच्चों से जा करके मायाजीत बनने का अनुभव पूछो। ऐसा एक्जाम्पल बनकर दिखाओ। जैसे मोहजीत परिवार प्रसिद्ध है वैसे मायाजीत सेन्टर प्रसिद्ध हो! यह ऐसा सेन्टर है जहाँ माया का कब वार नहीं होता। आना और बात है वार करना और बात है। तो इसमें भी नम्बर लेने वाले हो ना। इसमें नम्बरवन कौन बनेगा? लंदन, आस्ट्रेलिया बनेगा वा अमेरिका बनेगा? पैरिस बनेगा, जर्मन बनेगा, ब्राजील बनेगा, कौन बनेगा? जो भी बनें। बापदादा ऐसे चैतन्य म्युजयम एनाउन्स करेंगे। जैसे आबू का म्युजयम नम्बरवन कहते हैं। सेवा में भी तो सजावट में भी। ऐसे मायाजीत बच्चों का चैतन्य म्युजयम हो। हिम्मत है ना? उसके लिए अभी कितना समय चाहिए? गोल्डन जुबली में भी उनको इनाम देंगे जो पहले ही कुछ करके दिखायेंगे ना। लास्ट सो फास्ट हो दिखाओ। भारत वाले भी रेस करें। लेकिन आप उनसे भी आगे जाओ। बापदादा सभी को आगे जाने का चांस दे रहे हैं। 8 नम्बर में आ जाओ। आठ को ही इनाम मिलेगा। ऐसे नहीं सिर्फ एक को मिलेगा। यह तो नहीं सोचते हो – लंदन और आस्ट्रेलिया तो पुराने हैं, हम तो अभी नये-नये हैं। सबसे छोटा नया कौन सा सेन्टर है? सबसे छोटा जो होता है वह सभी को प्यारा होता है। वैसे भी छोटों को कहा जाता है – बड़े तो बड़े हैं लेकिन छोटे बाप समान हैं। सभी कर सकते हैं। कोई बड़ी बात नहीं। ग्रीस, टैम्पा, रोम यह छोटे हैं। यह तो बड़े उमंग में रहने वाले हैं। टैम्पा क्या करेगा? टेम्पल बनायेगा? वह रमणीक बच्ची आई थी ना-उनको कहा था कि टैम्पा को टेम्पल बनाओ। जो भी टैम्पा में आवे तो हर एक चैतन्य मूर्ति को देख हर्षित हो। आप शक्तिशाली तैयार हो जाओ। सिर्फ आप राजे तैयार हो जाओ फिर प्रजा झट बनेगी। रॉयल फैमली बनने में टाइम लगता है। यह रॉयल फैमली, राजधानी बन रही है फिर प्रजा तो ढेर आ जायेगी। इतनी आ जायेगी जो आप देख-देख तंग हो जायेंगे। कहेंगे बाबा अब बस करो लेकिन पहले राज्य अधिकारी तख्तनशीन तो बन जाएँ ना। ताजधारी तिलकधारी बन जाएँ तब तो प्रजा भी जी हजूर कहेगी। ताजधारी होगा नहीं तो प्रजा कैसे मानेगी कि यह राजा है। रॉयल फेमली बनने में टाइम लगता है। आप अच्छे समय पर पहुँचे हो जो रायल फैमली में आने के अधिकारी हो। अभी प्रजा का समय आने वाला है। राजा बनने की निशानी जानते हो ना? अभी से स्वराज्य अधिकारी विश्व राज्य अधिकारी बन जाओ। अभी से राज्य अधिकारी बनने वालों के समीप और सहयोगी बनने वाले वहाँ भी समीप और राज्य चलाने में सहयोगी बनेंगे। अभी सेवा में सहयोगी फिर राज्य चलाने में सहयोगी। तो अभी से चेक करो। राजे हैं या कभी राजा कभी प्रजा बन जाते! कभी अधीन कभी अधिकारी। सदा के राजे हो? तो कितने आप लकी हो? यह नहीं सोचना – हम तो पीछे आये हैं। वह पीछे आने वालों को सोचना पड़ेगा। आप अच्छे समय पर पहुँच गये हो। इसलिए लकी हो। यह नहीं सोचना हम पीछे आये हैं, राजा बन सकेंगे वा नहीं। रॉयल फेमली में आ सकेंगे वा नहीं। सदा यह सोचो हम नहीं आयेगे तो कौन आयेंगे? आना ही है, पता नहीं यह कर सकेंगे वा नहीं। पता नहीं यह होगा वा क्या….नहीं। पता है कि हमने हर कल्प किया है। कर रहे हैं और सदा करेंगे। समझा!

बिजी रहने के कारण अनेक प्रकार की माया से छूट गये हो।

माया हिलाये तो भी नहीं हिलना। अगर मायाजीत बनने का दृढ़ संकल्प होगा तो माया कुछ नहीं करेगी। सदैव यह स्मृति रखो कि कितने भी बड़े रूप से माया आये लेकिन नाथिंग न्यु

ि से सेवा करो। जितना स्वयं को सेवा में बिज़ी रखेंगे उतना स्वयं सहज मायाजीत बन जायेंगे। क्योंकि औरों को मायाजीत बनाने से उन आत्माओं की दुवाएं आपको और सहज आगे बढ़ाती रहेगी। मायाजीत बनना सहज लगता है या कठिन? आप जब कमजोर बन जाते हैं तब माया शक्तिशाली बनती है। आप कमजोर नहीं बनो। बाबा तो सदैव चाहते हैं कि हर एक बच्चा मायाजीत बनें। तो जिससे प्यार होता है, वो जो चाहता है, वही किया जाता है। बाप से तो प्यार है ना? तो करो। जब यह याद रहेगा कि बाप मेरे से यही चाहता है तो स्वत: ही शक्तिशाली हो जायेंगे और मायाजीत बन जायेगे। माया आती तब है, जब कमजोर बनते हो। इसलिए सदा मास्टर सर्वशक्तिवान बनो। मास्टर सर्वशक्तिवान बनने की विधि है – चलते-फिरते याद की शक्ति और सेवा की शक्ति देने में बिजी रहो। बिजी रहना अर्थात् मायाजीत रहना। रोज अपने मन का टाइमटेबुल बनाओ। मन बिजी होगा तो मनजीत मायाजीत हो ही जायेंगे।

जैसे कोई भी स्थूल खज़ाने को सिर्फ तिजोरी में वा लॉकर में रख लो और समय प्रमाण वा सदा काम में नहीं लगाओ तो वह खुशी की प्राप्ति नहीं होती है, सिर्फ दिल का दिलासा रहता है कि हमारे पास है। न बढ़ेगा, न अनुभूति होगी। ऐसे, ज्ञान रत्न अगर सिर्फ बुद्धि में धारण किया, याद रखा, मुख से वर्णन किया – पॉइन्ट बहुत अच्छी है, तो थोड़े समय के लिए अच्छी पॉइन्ट का अच्छा नशा रहता है लेकिन जीवन में, हर कर्म में उन ज्ञान रत्नों को लाना है। क्योंकि ‘ज्ञान रत्न भी हैं, ज्ञान रोशनी भी है, ज्ञान शक्ति भी है’। इसलिए अगर इसी विधि से कर्म में नहीं लाया तो बढ़ता नहीं है वा अनुभूति नहीं होती है। ज्ञान पढ़ाई भी है, ज्ञान लड़ाई के श्रेष्ठ शस्त्र भी हैं। यह है ज्ञान का मूल्य। मूल्य को जानना अर्थात् कार्य में लगाना और जितना – जितना कार्य में लगाते हैं उतना शक्ति का अनुभव करते जाते हैं। जैसे शस्त्र को समय प्रमाण यूज नहीं करो तो वह शस्त्र बेकार हो जाता है अर्थात् उसकी जो वैल्यू है, वह उतनी नहीं रहती है। ज्ञान भी शस्त्र है, अगर मायाजीत बनने के समय शस्त्र को कार्य में नहीं लगाया तो जो वैल्यू है, उसको कम कर दिया क्योंकि लाभ नहीं लिया। लाभ लेना अर्थात् वैल्यू रखना। ज्ञान रत्न सबके पास हैं क्योंकि अधिकारी हो। लेकिन भरपूर रहने में नम्बरवार हो। मूल कारण सुनाया – मनन शक्ति की कमी।

मनन शक्ति बाप के खज़ाने को अपना खज़ाना अनुभव कराने का आधार है। जैसे स्थूल भोजन हजम होने से खून बन जाता है। क्योंकि भोजन अलग है, उसको जब हजम कर लेते हो तो वह खून के रूप में अपना बन जाता है। ऐसे मनन शक्ति से बाप का खज़ाना सो मेरा खज़ाना – यह अपना अधिकार, अपना खज़ाना अनुभव होता है। बापदादा पहले भी सुनाते रहे हैं – ‘अपनी घोट तो नशा चढ़े’ अर्थात् बाप के खज़ाने को मनन शक्ति से कार्य में लगाकर प्राप्तियों की अनुभूति करो तो नशा चढ़े। सुनने के समय नशा रहता है लेकिन सदा क्यों नहीं रहता? इसका कारण है कि सदा मनन शक्ति से अपना नहीं बनाया है। मनन शक्ति अर्थात् सागर के तले में जाकर अन्तर्मुखी बन हर ज्ञान – रत्न की गुह्यता में जाना। सिर्फ रिपीट नहीं करना है लेकिन हर एक पॉइन्ट का राज़ क्या है और हर पॉइन्ट को किस समय, किस विधि से कार्य में लगाना है और हर पॉइन्ट को अन्य आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लगाना है – यह चारों ही बातें हर एक पॉइन्ट को सुनकर मनन करो। साथ – साथ मनन करते प्रैक्टिकल में उस राज़ के रस में चले जाओ, नशे की अनुभूति में आओ। माया के भिन्न – भिन्न विघ्नों के समय वा प्रकृति के भिन्न – भिन्न परिस्थितियों के समय काम में लगाकर देखो कि जो मैंने मनन किया कि इस परिस्थिति के प्रमाण वा विघ्न के प्रमाण यह ज्ञान रत्न मायाजीत बना सकते वा बनाने वाला है, वह प्रैक्टिकल हुआ अर्थात् मायाजीत बने? वा सोचा था मायाजीत बनेंगे लेकिन मेहनत करनी पड़ी वा समय व्यर्थ गया? इससे सिद्ध है कि विधि यथार्थ नहीं थी, तब सिद्धि नहीं मिली। यूज करने का तरीका भी चाहिये, अभ्यास चाहिए। जैसे साइन्स वाले भी बहुत पावरफुल बॉम्बस (शक्तिशाली गोले) ले जाते हैं। समझते हैं – बस, इससे अब तो जीत लेंगे। लेकिन यूज करने वाले को यूज करने का ढंग नहीं आता तो पावरफुल बॉम्ब होते भी यहाँ – वहाँ ऐसे स्थान पर जाकर गिरता जो व्यर्थ चला जाता। कारण क्या हुआ? यूज करने की विधि ठीक नहीं। ऐसे, एक – एक ज्ञान – रत्न अति अमूल्य है। ज्ञान रत्न वा ज्ञान की शक्ति के आगे परिस्थिति वा विघ्न ठहर नहीं सकते। लेकिन अगर विजय नहीं होती है तो समझो यूज करने की विधि नहीं आती है। दूसरी बात – मनन शक्ति का अभ्यास सदा न करने से समय पर बिना अभ्यास के अचानक काम में लगाने का प्रयत्न करते हो, इसलिए धोखा खा लेते हो। यह अलबेलापन आ जाता है – ज्ञान तो बुद्धि में है ही, समय पर काम में लगा लेंगे। लेकिन सदा का अभ्यास, बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। नहीं तो उस समय सोचने वाले को क्या टाइटल देंगे? – कुम्भकरण। उसने क्या अलबेलापन किया? यही सोचा ना कि आने दो, आयेंगे तो जीत लेंगे। तो ऐसा सोचना कि समय पर हो जायेगा, यह अलबेलापन धोखा दे देता है। इसलिए हर रोज मनन शक्ति को बढ़ाते जाओ।

जैसे कई स्वदर्शन – चक्र चलाने में हंसाते हैं ना – चक्र क्या चलायें, 5 मिनट में चक्र पूरा हो जाता है! स्थिति का अनुभव करने नहीं आता है तो सिर्फ रिपीट कर लेते हैं – सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग, इतने जन्म, इतनी आयु, इतना समय है…बस, पूरा हो गया। लेकिन स्वदर्शन चक्रधारी बनना अर्थात् नॉलेजफुल, पावरफुल स्थिति का अनुभव करना। पॉइन्ट के नशे में स्थित रहना, राज़ में राज़युक्त बनना – ऐसा अभ्यास हर पॉइन्ट में करो। यह तो एक स्वदर्शन चक्र की बात सुनाई। ऐसे, हर ज्ञान की पॉइन्ट को मनन करो और बीचबी च में अभ्यास करो। ऐसे नहीं सिर्फ आधा घण्टा मनन किया। समय मिले और बुद्धि मनन के अभ्यास में चली जाए। मनन शक्ति से बुद्धि बिजी रहेगी तो स्वत: ही सहज मायाजीत बन जायेंगे। बिजी देख माया आपे ही किनारा कर लेगी। माया आये और युद्ध करो, भगाओ; फिर कभी हार, कभी जीत हो – यह चींटी मार्ग का पुरूषार्थ है। अब तो तीव्र पुरूषार्थ करने का समय है, उड़ने का समय है। इसलिए मनन शक्ति से बुद्धि को बिजी रखो। इसी मनन शक्ति से याद की शक्ति में मग्न रहना – यह अनुभव सहज हो जायेगा। मनन – मायाजीत और व्यर्थ संकल्पों से भी मुक्त कर देता है। जहाँ व्यर्थ नहीं, विघ्न नहीं तो समर्थ स्थिति वा लगन में मग्न रहने की स्थिति स्वत: ही हो जाती है।

कई सोचते हैं – बीजरूप स्थिति या शक्तिशाली याद की स्थिति कम रहती है या बहुत अटेन्शन देने के बाद अनुभव होता है। इसका कारण अगले बार भी सुनाया कि लीकेज है, बुद्धि की शक्ति व्यर्थ के तरफ बंट जाती है। कभी व्यर्थ संकल्प चलेंगे, कभी साधारण संकल्प चलेंगे। जो काम कर रहे हैं उसी के संकल्प में बुद्धि का बिजी रहना – इसको कहते हैं साधारण संकल्प। याद की शक्ति या मनन शक्ति जो होनी चाहिए वह नहीं होती और अपने को खुश कर लेते कि आज कोई पाप कर्म नहीं हुआ, व्यर्थ नहीं चला, किसको दु:ख नहीं दिया। लेकिन समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति, शक्तिशाली याद रही? अगर वह नहीं रही तो इसको कहेंगे साधारण संकल्प। कर्म किया लेकिन कर्म और योग साथ – साथ नहीं रहा। कर्म कर्त्ता बने लेकिन कर्मयोगी नहीं बने। इसलिए कर्म करते भी, या मनन शक्ति या मग्न स्थिति की शक्ति, दोनों में से एक की अनुभूति सदा रहनी चाहिए। यह दोनों स्थितियाँ शक्तिशाली सेवा कराने के आधार हैं। मनन करने वाले, अभ्यास होने के कारण जिस समय जो स्थिति बनाने चाहें वह बना सकेंगे। लिंक रहने से लीकेज खत्म हो जायेगी और जिस समय जो अनुभूति – चाहे बीजरूप स्थिति की, चाहे फरिश्ते रूप की, जो करना चाहो वह सहज कर सकेंगे। क्योंकि जब ज्ञान की स्मृति है तो ज्ञान के सिमरण से ज्ञानदाता स्वत: ही याद रहता। तो समझा, मनन कैसे करना है? कहा था ना कि मनन का फिर सुनायेंगे। तो आज मनन करने की विधि सुनाई। माया के विघ्नों से सदा विजयी बनना वा सदा सेवा में सफलता का अनुभव करना, इसका आधार ‘मनन शक्ति’ है।

चार बातों से न्यारे बनो

मायाजीत और प्रकृतिजीत बनाने वाले बापदादा अपने वत्सों प्रति बोले

न्यारापन अर्थात् चारों ओर से न्यारा।

(1) अपने देह भान से न्यारा – जैसे साधारण दुनियावी आत्माओं को चलते फिरते, हर कर्म करते स्वत: और सदा देह का भान रहता ही है, मेहनत नहीं करते कि मैं देह हूँ, न चाहते भी सहज स्मृति रहती ही है। ऐसे कमल-आसनधारी ब्राह्मण आत्मायें भी इस देहभान से स्वत: ही ऐसे न्यारे रहें जैसे अज्ञानी आत्म- अभिमान से न्यारे हैं। हैं ही आत्म-अभिमानी। शरीर का भान अपने तरफ आकर्षित न करे। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, चलते-फिरते फरिश्ता-रूप वा देवता- रूप स्वत: स्मृति में रहा। ऐसे नैचुरल देही-अभिमानी स्थिति सदा रहे – इसको कहते हैं देहभान से न्यारे। देहभान से न्यारा ही परमात्म-प्यारा बन जाता है।

(2) इस देह के जो सर्व सम्बन्ध हैं, दृष्टि से, वृत्ति से, कृति से – उन सबसे न्यारा – देह का सम्बन्ध देखते हुए भी स्वत: ही आत्मिक, देही सम्बन्ध स्मृति में रहे। इसलिए दीपावली के बाद भैया-दूज मनाया ना। जब चमकता हुआ सितारा वा जगमगाता अविनाशी दीपक बन जाते हो, तो भाई-भाई का सम्बन्ध हो जाता है। आत्मा के नाते भाई-भाई का सम्बन्ध और साकार ब्रह्मावंशी ब्राह्मण बनने के नाते से बहन-भाई का श्रेष्ठ शुद्ध सम्बन्ध स्वत: ही स्मृति में रहता है। तो न्यारापन अर्थात् देह और देह के सम्बन्ध से न्यारा।

(3) देह के विनाशी पदार्थों में भी न्यारापन – अगर कोई पदार्थ किसी भी कर्मेन्द्रिय को विचलित करता है अर्थात् आसक्ति-भाव उत्पन्न होता है तो वह न्यारापन नहीं रहता। सम्बन्ध से न्यारा फिर भी सहज हो जाते लेकिन सर्व पदार्थों की आसक्ति से न्यारा – ‘अनासक्त’ बनने में रॉयल रूप की आसक्ति रह जाती है। सुनाया था ना कि आसक्ति का स्पष्ट रूप इच्छा है। इसी इच्छा का सूक्ष्म, महीन रूप है – अच्छा लगना। इच्छा नहीं है लेकिन अच्छा लगता है – यह महीन रूप ‘अच्छा’ के बदले ‘इच्छा’ का रूप भी ले सकता है। तो इसकी अच्छी रीति चेकिंग करो कि यह पदार्थ अर्थात् अल्पकाल सुख के साधन आकर्षित तो नहीं करते हैं? कोई भी साधन समय पर प्राप्त न हो तो सहज साधन अर्थात् सहजयोग की स्थिति डगमग तो नहीं होती है? कोई भी साधन के वश, आदत से म’जबूर तो नहीं होते? क्योंकि यह सर्व पदार्थ अर्थात् साधन – प्रकृति के साधन हैं। तो आप प्रकृतिजीत अर्थात् प्रकृति के आधार से न्यारे कमल-आसनधारी ब्राह्मण हो। मायाजीत के साथ-साथ प्रकृतिजीत भी बनते हो। जैसे ही मायाजीत बनते हो, तो माया बार-बार भिन्न-भिन्न रूपों में ट्रायल करती है कि मेरे साथी मायाजीत बन रहे हैं? तो भिन्न-भिन्न पेपर लेती है? प्रकृति का पेपर है – साधनों द्वारा आप सभी को हलचल में लाना। जैसे – पानी। अभी यह कोई बड़ा पेपर नहीं आया है। लेकिन पानी से बने हुए साधन, अग्नि द्वारा बने हुए साधन, ऐसे हर प्रवृति के तत्वों द्वारा बने हुए साधन मनुष्य आत्माओं के जीवन का अल्पकाल के सुख का आधार हैं। तो यह सब तत्व पेपर लेंगे। अभी तो सिर्फ पानी की कमी हुई है लेकिन पानी द्वारा बने हुए पदार्थ जब प्राप्त नहीं होंगे तो असली पेपर उस समय होगा। यह प्रकृति द्वारा पेपर भी समय प्रमाण आने ही हैं।

जैसे स्थापना के आरम्भ में आसक्ति है वा नहीं, उसकी ट्रायल के लिए बीच-बीच में जानबूझकर प्रोग्राम रखते रहे। जैसे, 15 दिन सिर्फ डोढ़ा और छाछ खिलाई, गेहूँ होते भी यह ट्रायल कराई गई। कैसे भी बीमार 15 दिन इसी भोजन पर चले। कोई भी बीमार नहीं हुआ। दमा की तकलीफ वाले भी ठीक हो गये ना। नशा था कि बापदादा ने प्रोग्राम दिया है! जब भक्ति में कहते हैं ‘विष भी अमृत हो गया’, यह तो छाछ थी! निश्चय और नशा हर परिस्थिति में विजयी बना देता है। तो ऐसे पेपर भी आयेंगे – सूखी रोटी भी खानी पड़ेगी। अभी तो साधन हैं। कहेंगे – दांत नहीं चलते, हजम नहीं होता। लेकिन उस समय क्या करेंगे? जब निश्चय, नशा, योग की सिद्धि की शक्ति होती है तो सूखी रोटी भी नर्म रोटी का काम करेगी, परेशान नहीं करेगी। आप सिद्धि-स्वरूप की शान में हो तो कोई भी परेशान नहीं कर सकता है। जब हठयोगियों के आगे शेर भी बिल्ली बन जाता, सांप खिलौना बन जाता, तो आप सहज राजयोगी, सिद्धि-स्वरूप आत्माओं के लिए यह सब कोई बड़ी बात नहीं। है तो आराम से यूज करो लेकिन समय पर धोखा न दे – यह चेक करो। परिस्थिति, स्थिति को नीचे न ले आये। देह के सम्बन्ध से न्यारा होना सहज है लेकिन देह के पदार्थों से न्यारा होना – इसमें बहुत अच्छा अटेन्शन (ध्यान) चाहिए।

(4) पुराने स्वभाव, संस्कार से न्यारा बनना – पुरानी देह के स्वभाव और संस्कार भी बहुत कड़े हैं। मायाजीत बनने में यह भी बड़ा विघ्न-रूप बनते हैं। कई बार बापदादा देखते हैं – पुराने स्वभाव, संस्कार रूपी सांप खत्म भी हो जाता लेकिन लकीर रह जाती जो समय आने पर बार-बार धोखा दे देती। यह कड़े स्वभाव और संस्कार कई बार इतना माया के वशीभूत बना देते हैं जो रांग को रांग समझते ही नहीं। ‘महसूसता-शक्ति’ समाप्त हो जाती है। इससे न्यारा होना – इसकी भी चेकिंग अच्छी तरह चाहिए। जब महसूसता-शक्ति समाप्त हो जाती है तो और ही एक झूठ के पीछे हजार झूठ अपनी बात को सिद्ध करने के लिए बोलने पड़ते हैं। इतना परवश हो जाते हैं! अपने को सत्य सिद्ध करना – यह भी पुराने संस्कार के वशीभूत की निशानी है। एक है यथार्थ बात स्पष्ट करना, दूसरा है अपने को जिद्द से सिद्ध करना। तो जिद्द से सिद्ध करने वाले कभी सिद्धिस्व रूप नहीं बन सकते हैं। यह भी चेक करो कि कोई भी पुराना स्वभाव, संस्कार अंश-मात्र भी छिपे हुए रूप में रहा हुआ तो नहीं है?

डबल सेवाधारी स्वत: ही मायाजीत

मायाजीत, जगतजीत बनाने वाले सर्व समर्थ बापदादा बोले:-

आज दिलाराम बाप अपने दिल तख्तनशीन बच्चों से वा अपने स्नेही, सहयोगी बच्चों से दिल की लेने-देन करने आये हैं। बाप की दिल में क्या रहता और बच्चों की दिल में क्या रहता है! आज सभी के दिल का हाल-चाल लेने आये हैं। खास दूरांदेशी डबल विदेशी बच्चों से दिल की लेन-देन करने आये हैं। मुरली तो सुनते रहते हो लेकिन आज रूह-रूहान करने आये हैं कि सभी बच्चे सहज सरल रूप से आगे बढ़ते जा रहे हो? कोई मुश्किल, चलने में थकावट तो नहीं लगती। थकते तो नहीं हो? किसी छोटी बड़ी बातों में कन्फ्यूज तो नहीं होते हो? जब किसी न किसी ईश्वरीय मर्यादा वा श्रीमत के डायरेक्शन को संकल्प में वा वाणी में वा कर्म में उल्लंघन करते हो तब कन्फ्यूज होते हो। नहीं तो बहुत खुशी-खुशी से, सुख चैन आराम से बाप के साथ-साथ चलने में कोई मुश्किल नहीं। कोई थकावट नहीं। कोई उलझन नहीं। किसी भी प्रकार की कमज़ोरी सहज को मुश्किल बना देती है। तो बापदादा बच्चों को देख रूह-रूहान कर रहे थे कि इतने लाडले सिकीलधे श्रेष्ठ आत्मायें, विशेष आत्मायें, पुण्य आत्मायें, सर्व श्रेष्ठ पावन आत्मायें, विश्व के आधारमूर्त आत्माएँ और फिर मुश्किल कैसे? उलझन में कैसे आ सकते हैं? किसके साथ चल रहे हैं? बापदादा स्नेह और सहयोग की बाँहों में समाते हुए साथ-साथ ले जा रहे हैं। स्नेह, सहयोग के बाँहों की माला सदा गले में पड़ी हुई है। ऐसे माला में पिराये हुए बच्चे और उलझन में आवें यह हो कैसे सकता! सदा खुशी के झूले में झूलने वाले, सदा बाप की याद में रहने वाले मुश्किल वा उलझन में आ नही सकते! कब तक उलझन और मुश्किल का अनुभव करते रहेंगे? बाप की पालना की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले, उलझन में कैसे आ सकते हैं। बाप का बनने के बाद, शक्तिशाली आत्मायें बनने के बाद, माया के नॉलेजफुल बनने के बाद, सर्वशक्तियों, सर्व खज़ानों के अधिकारी बनने के बाद, क्या माया वा विघ्न हिला सकते हैं? (नहीं) बहुत धीरे-धीरे बोलते हैं। बोलो सदाकाल के लिए नहीं। देखना – सभी का फोटो निकल रहा है। टेप भरी है आवाज़ की। फिर वहाँ जाकर बदल तो नहीं जायेंगे ना! अभी से सिर्फ स्नेह के, सेवा के, उड़ती कला के विशेष अनुभवों के ही समाचार देंगे ना। माया आ गई, गिर गये, उलझ गये, थक गये, घबरा गये, ऐसे-ऐसे पत्र तो नहीं आयेंगे ना। जैसे आजकल की दुनिया में समाचार पत्रों में क्या खबरे निकलती है? दु:ख की, अशान्ति की, उलझनों की।

लेकिन आपके समाचार पत्र कौन से होंगे? सदा खुशखबरी के। खुशी के अनुभव – आज मैंने यह विशेष अनुभव किया। आज यह विशेष सेवा की। आज मंसा के सेवा की अनुभूति की। आज दिल शिकस्त को दिलवाला बना दिया। नीचे गिरे हुए को उड़ा दिया। ऐसे पत्र लिखेंगे ना। क्योंकि 63 जन्म उलझे भी, गिरे भी, ठोकरें भी खाई। सब कुछ किया और 63 जन्मों के बाद यह एक श्रेष्ठ जन्म, परिवर्तन का जन्म, चढ़ती कला से भी उड़ती कला का जन्म, इसमें उलझना, गिरना, थकना, बुद्धि से भटकना, यह बापदादा देख नहीं सकते। क्योंकि स्नेही बच्चे हैं ना। तो स्नेही बच्चों का यह थोड़ा-सा दु:ख की लहर का समय सुखदाता बाप देख नहीं सकते। समझा! तो अभी सदाकाल के लिए बीती की बीती कर लिया ना। जिस समय कोई भी बच्चा जरा भी उलझन में आता वा माया के विघ्नों के वश हो जाता, कमज़ोर हो जाता उस समय वतन में बापदादा के सामने उन बच्चों का चेहरा कैसा दिखाई देता है, मालूम है? मिक्की माउस के खेल की तरह। कभी माया के बोझ से मोटे बन जाते। कभी पुरूषार्थ के हिम्मतहीन छोटे बन जाते। मिक्की माउस भी कोई छोटा, कोई मोटा होता है ना। मिक्की माउस तो नहीं बनेंगे ना। बापदादा भी यह खेल देख हँसते रहते हैं। कभी देखो फरिश्ता रूप, कभी देखो महादानी रूप, कभी देखो सर्व के स्नेही सहयोगी रूप, कभी डबल लाइट रूप और कभी-कभी फिर मिक्की माउस भी हो जाते हैं। कौन-सा रूप अच्छा लगता है? यह छोटा-मोटा रूप तो अच्छा नहीं लगता है ना। बापदादा देख रहे थे कि बच्चों को अभी कितना कार्य करना है। किया है वह तो करने के आगे कुछ भी नहीं है। अभी कितनों को सन्देश दिया है? लाख डेढ़ लाख बने हैं ना। कम से कम सतयुग की पहली संख्या 9 लाख तो बनाओ। बनाना तो ज्यादा है लेकिन अभी 9 लाख के हिसाब से भी सोचो तो लाख डेढ़ लाख कितने परसेन्ट हुए? बापदादा देख रहे थे कितनी सेवा अभी करनी है। जिसके ऊपर इतनी सेवा की जिम्मदारी है, वह कितने बिजी होंगे। उन्हों को और कुछ सोचने की फुर्सत होगी? जो बिजी रहता है वह सहज ही मायाजीत होता है। बिजी किसमें हैं? दृष्टि द्वारा, मंसा द्वारा, वाणी द्वारा, कर्म द्वारा, सम्पर्क द्वारा चारों प्रकार की सेवा में बिजी। मंसा और वाणी वा कर्म दोनों साथ-साथ हों। चाहे कर्म करते हो, चाहे मुख से बोलते हो, जैसे डबल लाइट हो, डबल ताजधारी हो, डबल पूज्य हो, डबल वर्सा पाते हो तो सेवा भी डबल चाहिए। सिर्फ मंसा नहीं। सिर्फ कर्म नहीं। लेकिन मंसा के साथ-साथ वाणी। मंसा के साथ-साथ कर्म। इसको कहा जाता है डबल सेवाधारी। ऐसे डबल सेवाधारी स्वत: ही मायाजीत रहते हैं। समझा! सिंगल सेवा करते हो। सिर्फ वाणी में वा सिर्फ कर्म में आ जाते हो तो माया को साथी बनने का चांस मिल जाता है। मंसा अर्थात् याद। याद है बाप का सहारा। तो जहाँ डबल है, साथी साथ में है तो माया साथी बन नहीं सकती। सिंगल होते हो तो माया साथी बन जाती है। फिर कहते सेवा तो बहुत की। सेवा की खुशी भी होती है लेकिन फिर सेवा के बीच में माया भी आ गई। कारण? सिंगल सेवा की। डबल सेवाधारी नहीं बने। अभी इस वर्ष डबल विदेशी किस बात में प्राइज लेंगे? प्राइज लेनी तो है ना!

Subscribe Newsletter