karmateet

26 / 01 / 70

कर्मातीत अवस्था अर्थात्‌ – १. देह और देही बिल्कुल अलग महसूस हो। २. देह के बन्धन से भी मक्त। ३. उनके कर्मों का खाता नहीं बनेगा न्यारे रहेंगे, कोई अटैचमेंट नहीं होगा।

जब तक अपने को मेहमान नहीं समझते हो तब तक न्यारी अवस्था नहीं हो सकती है। जो ज्यादा न्यारी अवस्था में रहते हैं, उनकी स्थिति में विशेषता क्या होती है? उनकी बोली से उनके चलन से उपराम स्थिति का औरों को अनुभव होगा। जितना ऊपर स्थिति जाएगी, उतना उपराम होते जायेंगे। शरीर में होते हुए भी उपराम अवस्था तक पहुंचना है। बिलकुल देह और देही अलग महसूस हो। उसको कहा जाता है याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज। वा योग की प्रैक्टिकल सिद्धि।

कर्मातीत अवस्था किसको कहा जाता है?

उत्तर 1 :- .. बात करते-करते जैसे न्यारापन खींचे। बात सुनते भी जैसे कि सुनते नहीं। ऐसी भासना औरों को भी आये। ऐसी स्थिति की स्टेज को कर्मातीत अवस्था कहा जाता है।

..❶  कर्मातीत अर्थात् देह के बंधन से मुक्त। कर्म कर रहे हैं लेकिन उनके कर्मों का खाता नहीं बनेगा जैसे कि न्यारे रहेंगे, कोई अटैचमेंट नहीं होगा।

..❷  कर्म करनेवाला अलग और कर्म अलग हैं – ऐसे अनुभव दिन प्रति दिन होता जायेगा। इस अवस्था में जास्ती बुद्धि चलाने की भी आवश्यकता नहीं है। संकल्प उठा और जो होना है वही होगा।ऐसी स्थिति में सभी को आना होगा।

Starting :

इस देह में रहते विदेही अर्थात् कर्मातीत बनने का एग्जाम्पल (मिसाल) साकार में ब्रह्मा बाप को देखा।

जब तक यह देह है, कर्मेन्द्रियों के साथ इस कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजा रहे हो, तब तक कर्म के बिना सेकण्ड भी रह नहीं सकते हो।

  1. कर्मातीत अर्थात् कर्म करते हुए कर्म के बन्धन से परे।  एक है बन्धन और दूसरा है सम्बन्ध। कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म के सम्बन्ध में आना अलग चीज़ है, कर्म के बन्धन में बँधना वह अलग चीज़ है।

2.  कर्मातीत अर्थात् कर्म के वश होने वाला नहीं लेकिन मालिक बन, अथार्टी बन वर्मेन्द्रियों के सम्बन्ध में आये, विनाशी कामना से न्यारा हो कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराये। आत्मा मालिक को कर्म अपने अधीन न करे लेकिन अधिकारी बन कर्म कराता रहे।

कर्मातीत अर्थात् इससे अतीत अर्थात् न्यारा।

3 .कर्मातीत आत्मा सम्बन्ध में आती है लेकिन बन्धन में नहीं रहती।

4. कर्मातीत अर्थात् देह, देह के सम्बन्ध, पदार्थ, लौकिक चाहे अलौकिक दोनों सम्बन्ध से, बन्धन से अतीत अर्थात् न्यारे।

Story of rope and man climbing the hill.

5. कर्मातीत कभी नाराज़ नहीं होगा क्योंकि वह कर्मसम्बन्ध और कर्मबन्धन के राज़ को जानता है।

 

6. कर्मातीत अर्थात् देह के बंधन से मुक्त। कर्म कर रहे हैं लेकिन उनके कर्मों का खता नहीं बनेगा जैसे कि न्यारे रहेंगे, कोई अटैचमेंट नहीं होगा। कर्म करनेवाला अलग और कर्म अलग हैं – ऐसे अनुभव दिन प्रति दिन होता जायेगा। इस अवस्था में जास्ती बुद्धि चलाने की भी आवश्यकता नहीं है। संकल्प उठा और जो होना है वाही होगा।

 

7. कर्मातीत अर्थात् अपने पिछले कर्मों के हिसाब-किताब के बन्धन से भी मुक्त। चाहे पिछले कर्मों के हिसाब-किताब के फलस्वरूप तन का रोग हो, मन के संस्कार अन्य आत्माओं के संस्कारों से टक्कर भी खाते हों लेकिन कर्मातीत, कर्मभोग के वश न होकर मालिक बन चुक्तु करायेंगे। कर्मयोगी बन कर्मभोग चुक्तु करना – यह है कर्मातीत बनने की निशानी। योग से कर्मभोग को मुस्कराते हुए सूली से काँटा कर भस्म करना अर्थात् कर्मभोग को समाप्त करना है।

8. न व्यक्ति को, न वैभव वा वस्तु को सहारा बनाओ। इसको ही कहते हैं – ‘‘कर्मातीत’’।

जब कर्मातीत अवस्था होनी है तो हर व्यक्ति, वस्तु, कर्म के बन्धन से अतीत होना, न्यारा होना – इसको ही कर्मातीत अवस्था कहते हैं।

9. कर्मातीत माना कर्म से न्यारा हो जाना नहीं। कर्म के बन्धनों से न्यारा। न्यारा बनकर कर्म करना अर्थात् कर्म से न्यारे।

10. कर्मातीत अवस्था अर्थात् बंधनमुक्त, योगयुक्त, जीवनमुक्त अवस्था!

11. कर्म करते भी कर्म के अच्छे या बुरे प्रभाव में नहीं आयेंगे। इसको कहते हैं-कर्मातीत अवस्था।

12. कर्म के बन्धन से मुक्त – इसको ही ‘कर्मातीत’ कहते हैं। कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फँसने से न्यारे, इसको कहते हैं – कर्मातीत। कर्मयोगी स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव कराती है।

 

13. कर्मातीत अर्थात् न्यारा और प्यारा। जैसे मुझ आत्मा ने इस शरीर द्वारा कर्म किया ना, ऐसे न्यारापन रहे। न कार्य के स्पर्श करने का और करने के बाद जो रिजल्ट हुई – उस फल को प्राप्त करने में भी न्यारापन। कर्म का फल अर्थात् जो रिजल्ट निकलती है उसका भी स्पर्श न हो, बिल्कुल ही न्यारापन अनुभव होता रहे। जैसे कि दूसरे कोई ने कराया और मैंने किया। किसी ने कराया और मैं निमित्त बनी। लेकिन निमित्त बनने में भी न्यारापन। ऐसी कर्मातीत स्थिति बढ़ती जाती है – ऐसा फील होता है?

14. कर्मातीत का अर्थ ही है हर सबजेक्ट में फुल पास।

15. अभी-अभी शरीर में आये, फिर अभी-अभी अशरीरी बन गये – यह प्रैक्टिस करनी है। इसी को ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है।

16. बात करते-करते जैसे न्यारापन खींचे। बात सुनते भी जैसे कि सुनते नहीं। ऐसी भासना औरों को भी आये। ऐसी स्थिति की स्टेज को कर्मातीत अवस्था कहा जाता है।

17. कर्मातीत अर्थात् कर्म के अधीन नहीं, कर्मों के परतन्त्र नहीं। स्वतन्त्र हो कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराते हो?

18. कर्मातीत अर्थात् सर्व कर्म बन्धनों से मुक्त, न्यारे बन, प्रकृति द्वारा निमित्त-मात्र कर्म कराना।

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कर्मबन्धन,

  1. कर्म के हद के फल के वशीभूत बना देता है। वशीभूत शब्द ही सिद्ध करता है जो किसी के भी वश में आ जाता।

2. कर्म के वशीभूत अर्थात् कर्म के विनाशी फल की इच्छा के वशीभूत हैं तो कर्म भी बन्धन में बाँध बुद्धि द्वारा भटकाता रहता है।

3. इसको कहा जाता है कर्मबन्धन, जो स्वयं को भी परेशान करता है और दूसरों को भी परेशान करता है।   सेवा में स्वार्थ

4. कर्मेन्द्रियाँ अपने आकर्षण में आकर्षित करती हैं अर्थात् कर्म के वशीभूत बनते हैं, अधीन होते हैं, बन्धन में बंधते हैं।

5. आँख का काम है देखना लेकिन देखने का कर्म कराने वाला कौन है? आँख कर्म करने वाली है और आत्मा कर्म कराने वाली है। तो कराने वाली आत्मा, करने वाली कर्मेन्द्रिय के वश हो जाए – इसको कहते हैं कर्मबन्धन।

6. कभी-कभी कहते हो ना कि बोलने नहीं चाहते थे लेकिन बोल लिया, करने नहीं चाहते थे लेकिन कर लिया। इसको कहा जाता है कर्म के बन्धन में वशीभूत आत्मा।

7. देह में वा सम्बन्ध में अगर अधीन हैं तो सम्बन्ध भी बन्धन बन जाता है।

8. बन्धन में सदा स्वयं को किसी-न-किसी प्रकार से परेशान करता रहेगा, दु:ख की लहर अनुभव करायेगा, उदासी का अनुभव करायेगा। विनाशी प्राप्तियाँ होते भी अल्पकाल के लिए वह प्राप्तियों का सुख अनुभव करेगा।

9. भरपूर होते भी अपने को खाली-खाली अनुभव करेगा।

10. सब कुछ होते हुए भी ‘कुछ और चाहिए’ – ऐसे अनुभव करता रहेगा और जहाँ ‘चाहिए-चाहिए’ है वहाँ कभी भी सन्तुष्टता नहीं रहेगी

11. कोई न कोई बात पर स्वयं से नाराज़ या दूसरों से नाराज़ न चाहते भी होता रहेगा। क्योंकि नाराज़ अर्थात् न राज़ अर्थात् राज़ को नहीं समझा। अधिकारी बन कर्मेंन्द्रियों से कर्म कराने का राज़ नहीं समझा। तो नाराज़ ही होगा ना।

12. क्या हो गया, कैसे हो गया, ऐसा तो होना नहीं चाहिए, मेरे से ही क्यों होता, मेरा ही भाग्य शायद ऐसा है – यह रस्सियाँ बाँधते जाते हो। यह संकल्प ही रस्सियाँ हैं। इसलिए कर्म के बन्धन में आ जाते हो। व्यर्थ संकल्प ही कर्मबन्धन की सूक्ष्म रस्सियाँ हैं।

13. कोई कमज़ोर स्वभाव-संस्कार वा पिछला संस्कार-स्वभाव वशीभूत बनाता है

14. कर्मातीत मैं ही बनूँगी और जब समय आवे तो यह सूक्ष्म बंधन उड़ने न देवें। अपनी तरफ खींच लेवें। फिर समय पर क्या करेंगे? बंधा हुआ व्यक्ति अगर उड़ना चाहे तो उड़ेगा वा नीचे आ जायेगा! तो यह सूक्ष्म बंधन समय पर नम्बर लेने में वा साथ चलने में वा एवररेडी बनने में बंधन न बन जाएँ। इसलिए ब्रह्मा बाप चेक कर रहे थे। जिसको यह सहारे समझते हैं वह सहारा नहीं हैं लेकिन यह रॉयल धागा है। जैसे सोनी हिरण का मिसाल है ना। सीता को कहाँ ले गया! तो सोना हिरण यह बंधन है। इसको सोना समझना माना अपने श्रेष्ठ भाग्य को खोना। सोना नहीं है, खोना है। राम को खोया, अशोक वाटिका को खोया।

15. तो देह के कर्म, जैसे किसका नेचर होता है – आराम से रहना, आराम से समय पर खाना, चलना यह भी कर्म का बन्धन अपने तरफ खींचता है।

 

कर्म सम्बन्ध

कराने वाले बन कर्म कराओ – इसको कहेंगे कर्म के सम्बन्ध में आना।  सम्बन्ध शब्द न्यारा और प्यारा अनुभव कराने वाला है।

 

कर्मातीत स्थिति की निशानियाँ  :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

  1. जितना लास्ट स्टेज़ (Last Stage) अथवा कर्मातीत स्टेज समीप आती जाएगी उतना आवाज़ से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति हो

2. अप्राप्त वस्तु नहीं रह जाती तो ऐसी स्टेज को ही ‘कर्मातीत’ अथवा ‘फरिश्तेपन’ की स्टेज कहा जाता है।

3. ‘करनहार’ और ‘करावनहार’ की स्मृति से कर्मातीत स्थिति का अनुभव ।

4. कर्मातीत बनने की स्टेज की निशानी है सदा सफलतामूर्त। समय भी सफल, संकल्प भी सफल, सम्पर्क और सम्बन्ध भी सफल

5. कर्मातीत स्थिति वाला देह के मालिक होने के कारण कर्मभोग होते हुए भी न्यारा बनने का अभ्यासी है। बीचबी च में अशरीरी-स्थिति का अनुभव बीमारी से परे कर देता है। एक अपना अशरीरी बनने का अभ्यास, दूसरा आज्ञाकारी बनने का प्रत्यक्षफल बाप की दुआयें, वह बीमारी अर्थात् कर्मभोग को सूली से कांटा बना देती हैं।

छोटी को बड़ी बात बनाना या बड़ी को छोटी बात बनाना – यह अपनी स्थिति के ऊपर है। परेशान होना वा अपने अधिकारीपन की शान में रहना – अपने ऊपर है।

6. कर्मातीत आत्मा कहेगी – जो होता है वह अच्छा है, मैं भी अच्छा, बाप भी अच्छा, ड्रामा भी अच्छा। यह बन्धन को काटने की कैंची का काम करती है। बन्धन कट गये तो ‘कर्मातीत’ हो गये ना। कल्याणकारी बाप के बच्चे होने के कारण संगमयुग का हर सेकण्ड कल्याणकारी है। हर सेकण्ड का आपका धन्धा ही कल्याण करना है, सेवा ही कल्याण करना है। ब्राह्मणों का आक्यूपेशन (धंधा) ही है विश्व-परिवर्तक, विश्व-कल्याणी। ऐसे निश्चयबुद्धि आत्मा के लिए हर घड़ी निश्चित कल्याणकारी है।

7. कर्मातीत, वानाप्रस्थी आत्मायें ही तीव्रगति की सेवा के निमित्त ।

जब चाहो कर्म में आओ, जब चाहो कर्म से परे कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ। इसको कहा जाता है अभी- अभी न्यारे और अभी-अभी कर्म द्वारा सर्व के प्यारे

8. एक है कर्म-अधीन स्टेज, दूसरी है कर्मातीत अर्थात् कर्म-अधिकारी स्टेज।

9. कर्मबन्धनी आत्माएँ जहाँ हैं वहाँ ही कार्य कर सकती हैं। और कर्मातीत आत्माएँ एक ही समय पर चारों ओर अपना सेवा का पार्ट बजा सकती हैं। क्योंकि कर्मातीत हैं। इसलिए दीदी भी आप सबके साथ है। कर्मातीत आत्मा को डबल पार्ट बजाने में कोई मुश्किल नहीं। स्पीड बहुत तीव्र होती है। सेकण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुँच सकती है। विशेष आत्माएँ अपना विशेष पार्ट सदा बजाती हैं।

 

सभी स्वयं को कर्मातीत अवस्था के नज़दीक अनुभव करते जा रहे हो? कर्मातीत अवस्था के समीप पहुँचने की निशानी जानते हो? समीपता की निशानी समानता है। किस बात में?

आवाज में आना व आवाज से परे हो जाना,

साकार स्वरूप में कर्मयोगी बनना और साकार स्मृति से परे न्यारे निराकारी स्थिति में स्थित होना,

सुनना और स्वरूप होना,

मनन करना और मग्न रहना,

रूह- रूहान में आना और रूहानियत में स्थित हो जाना,

सोचना और करना, कर्मेन्द्रियों में आना अर्थात् कर्मेन्द्रियों का आधार लेना और कर्मेन्द्रियों से परे होना, प्रकृति द्वारा प्राप्त हुए साधनों को स्वयं प्रति कार्य में लगाना और प्रकृति के साधनों से समय प्रमाण निराधार होना, देखना, सम्पर्क में आना और देखते हुए न देखना, सम्पर्क में आते कमल-पुष्प के समान रहना, इन सभी बातों में समानता। उसको कहा जाता है-कर्मातीत अवस्था की समीपता।

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स्विच आन किया और सेकण्ड में अशरीरी बनें। यह अभ्यास कर्मातीत स्थिति का अनुभव करायेगा।

कथनी करनी और रहनी तीनों ही एक हो तब कर्मातीत अवस्था में जल्दी से जल्दी पहुँच सकेंगे।

कर्मातीत अवस्था तक पहुंचने के लिए कन्ट्रोलिंग पावर को बढ़ाओ, स्वराज्य अधिकारी बनो । रोज अपनी दरबार लगाओ। राज्य अधिकारी हो ना! तो अपनी दरबार लगाओ, कर्मचारियों से हालचाल पूछो । ब्रह्मा बाप ने भी मेहनत की, रोज़ दरबार लगाई तब कर्मातीत बनें।

कर्मातीत – इसके लिए तैयारी कौन-सी करनी है? डबल लाइट बनो। तो डबल लाइट बनना आता है ना। ट्रस्टी समझाना अर्थात् लाइट बनना। दूसरा – आत्मा समझना अर्थात् लाइट होना।

कर्मातीत स्थिति के समीप जाने के लिए ब्रह्मा बाप समान न्यारे अशरीरी बनने के अभ्यास पर विशेष अटेन्शन। जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले ‘न्यारे और प्यारे’ रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। जो सभी बच्चे अनुभव सुनाते हो – सुनते हुए न्यारे, कार्य करते हुए न्यारे, बोलते हुए न्यारे रहते थे। सेवा को वा कोई कर्म को छोड़ा नहीं लेकिन न्यारे हो लास्ट दिन भी बच्चों की सेवा समाप्त की।

कर्मातीत अवस्था बनने का विशेष साधन है – निरहंकारी बनना। निरंहकारी ही निराकारी बन सकता है।

कर्मातीत बनते हो, सबकी विधि बिन्दी है। इसलिए बापदादा ने पहले भी कहा है – अमृतवेले बापदादा से मिलन मनाते, रूहरिहान करते जब कार्य में आते हो तो पहले तीन बिन्दियों का तिलक मस्तक पर लगाओ,

‘योगी बनो, पवित्र बनो। ज्ञानी बनो, कर्मातीत बनो’

दादी के बोल कर्मातीत होना ही है, होना ही है, होना ही है…और मम्मा के यह बोल कि सदा जो करना है सो आज करो कल पर नहीं छोडो और दीदी के यह बोल अब घर चलना है यह कानों में गूंजना चाहिए। बार-बार अब घर चलना है। तो धुन लगा दो – कर्मातीत होना है अब घर चलना है।

शिव बाबा के तीन स्वरूप से तीन विशेष वरदान प्राप्त होते हैं निराकार रूप कर्मातीत भव, आकारी स्वरूप से डबल लाइट भव जिससे डबल ताजधारी बनेंगे, साकारी स्वरूप से बाप समान निरहंकारी और निर्विकारी भव! ।

 

कर्मातीत स्थिति के नजदीक कहेंगे या दूर कहेंगे?

कर्मातीत बनना यह लक्ष्य तो सबका अच्छा है। अब चेक करो – कहाँ तक कर्मों के बन्धन से न्यारे बने हो?

आज का दिवस ब्रह्मा बाप समान कर्मातीत बनने का दिवस mayengay. उमंग-उत्साह वाले हैं ना

बहुतकाल अचल, अडोल, निर्विघ्न, निर्बन्धन, निर्विकल्प, निर्विकर्म अर्थात् निराकारी, निर्विकारी, निरंहकारी – इसी स्थिति को दुनिया के आगे प्रत्यक्ष रूप में लाओ

 

Karm Ateet – means detached. I will be doing actions in remem. Of Baba, but not based on karmas from the past. If there is a bondage of karmas from the past, then you feel some energy is making you do it, there is no freedom. I do it as if karankaravanhar is Baba.

There is some influence of karma from the past. DJ kept repeating, karmateet, vikarmajeet – all sinful actions of body conscs.from copper, iron ages.

Mama always used to tell, becoz of body consc, actions are by vices, we can become conqueror of vices, viceless stage. Vikarmajeet means victory over my past sinful actions, that’s only possible thru remem. Of Baba, not repeat that action. Those past sanskars we hv to burn in fire of yoga.

Past karmas influence in a very gross way.

https://www.youtube.com/watch?v=d4jrQiyaJCw

 

 

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