Brahma Kumaris inspire Prisoners at the Central Jail of Ambikapur

Ambikapur ( Madhya Pradesh ): Brahma Kumaris conducted spiritual discourse at Central jail of Ambikapur. Center Incharge of Sarguja district BK Vidya, Jail Superintendent Mr. Rajendra Gayakwad along with 500 prisoners and staff members were present.

BK Vidya inspired the prisoners to bring positive change in their life, by igniting inner powers and self-confidence. By citing an example of Sukrat she mentioned that human beings are considered beautiful by their good deeds and positive thoughts and not by their physical appearances. People are very cautious of doing anything in a place with CCTV cameras. Similarly we must remember that God is watching us all the time, this will make us attentive of our actions. People with divine virtues are known as deity and people with demonic deeds are called devils. We must always be giving to others without any expectation of getting anything in return. Giving is receiving. If we give love to others we will automatically get love in return, if we give respect we will get respect from others.

The prisoners experienced inner peace in the guided meditation conducted by BK Vidya.

Jail superintendent Mr. Rajendra Gayakwad inspired everyone to practice Rajyoga meditation. He said our high expectations make us dissatisfied in life. Dissatisfaction is the main cause of unhappiness, stress, worry, laziness etc. These negative emotions prompt people to commit crimes in the society. This makes people guilty and they lose their self-worth. To bring positive change in life we must always remember God and perform good deeds.

Assistant Jail superintendent Mr. Hirendra Thakur paid his gratitude to Brahma Kumaris. He said that the Brahma Kumaris are known all over the world over for their selfless service to the society and they teaches us the method to connect with the supreme soul.

The program was concluded by offering a prayer to the supreme soul.

News in Hindi:

अम्बिकापुर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा केन्द्रीय जेल अम्बिकापुर में अम्बिकापुर जेल अधीक्षक राजेन्द्र गायकवाड़ जी के अनुमति से पुरूष वार्ड में आध्यात्मिक प्रवचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें जेल अधीक्षक राजेन्द्र गायकवाड़, सरगुजा संभाग की सेवाकेन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी, एवं जेल के स्टाफ तथा लगभग 500 कैदी भाई  कार्यक्रम में उपस्थित थे।

सरगुजा संभाग की सेवाकेन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी कैदी भाईयों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हो, उनका आन्तरिक शक्तियाँ जागृत हो, उनका मनोबल एवं आत्मविश्वास बढे इस पर अपने प्रेरणादायी उद्बोधन में सुकरात का उदाहरण देते हुये कहा कि भले ही वो दिखने में सुन्दर नहीं थे परन्तु उनके विचार बहुत सुन्दर थे इसी प्रकार मनुष्य अपने कर्मो से सुन्दर बनता हैं इसलिये मनुष्य को श्रेष्ठ कर्म करना चाहिये जिससे उसकी सुन्दरता सदा बनी रहेगी इसका आधार है श्रेष्ठ विचार। क्योंकि जितना हम अपने विचारों को श्रेष्ठ बनायेंगे उतना हमारा कर्म श्रेष्ठ बनेगा और जब कर्म श्रेष्ठ बनेगा तभी हम महान बनेंगे। और आगे उन्होंने कहा कि सदा ये ध्यान रहें कि भगवान हमें देख रहा है तो हमें अपने कर्माें पर अटेन्शन रहेगा क्योंकि जैसे बाहर सी.सी. टी.वी कैमरें के निगरानी में रहते तो बुरा कर्म करने से डरते है वैसे ही सदा हमें ये अटेन्शन रहे कि हम भगवान की नजर में है तो ऑटोमेटिकली हमसे श्रेष्ठ कर्म ही होगा बुरा कर्म नहीं। दिव्य कर्म करने वाला मानव देवता कहलाते हैं और आसुरी कर्म करने वाला मानव असुर कहलाते हैं। जो देवता होते हैं उनके अन्दर सदा ही देने का गुण होता है देने वाला ही महान बनता हैं तो हम अपने जीवन को गुणों से इतना परिपूर्ण बनाये।  और सदा लक्ष्य रखे कि मुझे कुछ न कुछ लोगो को देते ही रहना हैं कभी किसी से लेने की भावना नहीं रखना हैं क्योकि जो हम देते हैं वहीं हमारे पास रिटर्न में आता है दूसरों को प्यार देंगे तो प्यार मिलेगा, सम्मान देंगें तो सम्मान मिलेगा इसलिये सदा देने की भावना रखना हैं।  हमेशा हमें दूसरों के गुणों को देखने का अभ्यास करना चाहिये तभी हम गुणमूर्त बनेंगे।

तत्पश्चात् उन्होंने कैदी भाईयों के मन की अशांति एवं तनाव को दूर करने के लिये अर्न्तजगत की यात्रा कॉमेन्ट्री के माध्यम से करायी।

जेल अधीक्षक राजेन्द्र गायकवाड़ जी  कैदी भाईयों को मेडिटेशन करने के लिये प्रेरित करते हुये कहा कि जब व्यक्ति के अन्दर आवश्यकता से अधिक अपेक्षायें बढ़ जाती हैं तो उससे असन्तुष्टि आती हैं। इसी असन्तुष्टि के कारण जीवन में दुःख, अशांति, परेशानी, चिंता और आलस्य की उत्पत्ति होती हैं यही मन को इतना खराब कर देता कि वो अपराध करने के लिये भी बाध्य हो जाता हैं। और अपराध करने से हम अपने ही नजरों में गिर जाते है जिससे मन पापी और अनिष्ठ हो जाता हैं इससे बचने के लिये श्रेष्ठ कर्म करें और नित्य दिन प्रभु को याद करे तो निश्चित रूप से जीवन परिवर्तित हो जायेगा।

सहायक जेल अधीक्षक हिरेन्द्र ठाकुर जी ने जेल अधीक्षक और ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी का आभार प्रकट करते हुये कहा कि ब्रह्माकुमारी संस्था से सदा हम जुडे रहेंगें, उनके आदर्शों पर चलते रहेंगे क्योंकि ये संस्था विश्व प्रसिद्ध संस्था हैं इसमें कोई छोटा नहीं हैं, कोई स्वार्थ नहीं हैं यहाँ इन्सानों को श्रेष्ठ बनने का स्वरूप एवं आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की विधि सिखातेे हैं। और बाह्य परिस्थिति कैसा भी हो यदि हमारे अन्दर सकारात्मक विचार हैं, श्रेष्ठ कर्म करने की विधि हैं तो उस परिस्थिति पर विजय प्राप्त कर हम महान बन सकते हैं और स्वयं को अच्छे स्वरूप में ढाल सकते हैं और दुनिया में जो भी करना हैं उसे श्रेष्ठ ही करना हैं अच्छे विचारों को ही जीवन में धारण करना हैं।

कैदी गुरूप्रीत भाई जेल अधीक्षक एवं ब्रह्माकुमारी दीदी का शब्दों से सम्मान करते हुये  इतनी षक्ति हमें देना दाता और नेकी पर चले बदी से न डरे प्रार्थना गाया जिससे सभी कैदी भाईयों के मन में भगवान के प्रति प्रेम, विश्वास, आस्था और निष्ठा जागृत हुआ।

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