Raipur (Chhattisgarh): The Brahma Kumaris of Raipur, capital of Chhattisgarh, celebrated the 51st Ascension Day of Prajapita Brahma as “World Peace Day.” On this occasion BK Rashmi, while paying her humble homage to Brahma Baba, said, “This is the most important phase in World History. It is the time when the Old World is getting transformed into a New World. This is called Sangamyug or Transitional Period because the Incorporeal God Father, Supreme Soul, through His Corporeal Medium, Prajapita Brahma, is imparting Spiritual Knowledge and teaching Rajayog in order to re-establish a Golden Aged World. Prajapita Brahma gave a new direction to Society by following the way shown by God.” She said that all over the World at more than 9,000 Brahma Kumaris Service Centres World Peace Day is being celebrated on 18th January 2020.
ब्रह्मा बाबा ने परमात्मा द्वारा बतलाए मार्ग पर चलकर समाज को नई दिशा दी…
रायपुर, १८ जनवरी, २०२०: यह सृष्टि परिवर्तन की बेला है। इस समय विश्व इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण समय संधिकाल अथवा संगमयुग चल रहा है। जबकि निराकार परमपिता परमात्मा अपने साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देकर नई सतोप्रधान दुनिया की पुर्नस्थापना करा रहे हैं। ब्रह्मा बाबा ने परमात्मा द्वारा बतलाए मार्ग पर चलकर समाज को नई दिशा दी है।
यह विचार ब्रह्माकुमारी रश्मि दीदी ने प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के संस्थापक ब्रह्मा बाबा की ५१ वीं पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्घाजंलि देते हुए व्यक्त किया। इस दिन को सारे विश्व में फैले नौ हजार से भी अधिक सेवाकेन्द्रों में विश्व शान्ति दिवस के रूप में मनाया गया। उन्होंने आगे कहा कि प्रजापिता ब्रह्मा को इस संस्थान में परमात्मा, भगवान अथवा गुरु का दर्जा नहीं दिया जाता है। अपितु वह भी एक इन्सान थे जिन्होंने नारी शक्ति को आगे कर ईश्वरीय सेवा के द्वारा महिला सशक्तिकरण का कार्य किया। उन दिनों समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की थी किन्तु ब्रह्माबाबा ने उनमें छिपी नैतिक और आध्यात्मिक शक्तियों को सामने लाकर विश्व में एक नई शुरुआत की। उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए नारी शक्ति को आगे करके उनके खोए हुए गौरव को वापस लौटाया।
उन्होंने वैश्विक बदलाव की चर्चा करते हुए कहा कि जब सृष्टि प्रारम्भ हुई तो सतोप्रधान थी। उस समय यह दैवभूमि कहलाती थी। सभी प्राणी मात्र दैवी गुणों से सम्पन्न होने के कारण देवी और देवता कहलाते थे। चहुं ओर सुख शान्ति व्याप्त थी। किन्तु द्वापर युग से समाज में नैतिक पतन होने से दु:ख-अशान्ति की शुरुआत हुई। तब विभिन्न धर्म पैगम्बरों ने अपने-अपने धर्मों की शिक्षा देकर नैतिक और सामाजिक गिरावट को रोकने का कार्य किया। इससे अधोपतन की गति में कमी जरुर आयी लेकिन पूरी तरह से उस पर रोक नही लग सकी।
उन्होंने कहा कि आज विश्व में भौतिक चकाचौंध बहुत है लेकिन दु:ख, अशान्ति, तनाव, बिमारी आदि की भी कमी नहीं है। अब यह सृष्टि इतनी पुरानी और जर्जर हो चुकी है कि इसका विनाश ही एकमात्र समाधान है। विश्व का उद्घार करना एक परमात्मा का कार्य है। जो कि वह वर्तमान संगमयुग पर आकर कर रहे हैं। वर्तमान संसार में कोई सार नहीं बचा है। जीवन में दिनों-दिन बढ़ रही चिन्ता, तनाव, दु:ख और अशान्ति ने समाज को नर्कतुल्य बना दिया है।